गुलिस्तान में खिले गुलों
की तरह,
तुम्हारा चेहरा,
कोमल, मासूम, आकर्षक
सदा महकता तुम्हारा एहसास
उस एहसास
की डोर से बंधा रहा मैं
एक उम्र तक।
हालात की तेज़ हवा का झोंका आया
पत्ती-पत्ती बिखर गई
डोर टूट गई
लेकिन एहसास बचा रह गया।
जीवन की राह में
हम बिछुड़ गए।
तुम्हीं कहो,
इस हादिसे को क्या नाम दूँ।
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