सम्बंध निभाने में अक्सर,
जीना दूभर हो जाता है।
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मन भी जैसे सन्नाटा है,
चुपचाप सिसकता रहता है।
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सीने में छिपा लो फिर भी ग़म,
आँसूं बन आँख से ढरता है।
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चिन्ता तन को खा जाती है,
चिन्तन से मनुज संवरता है।
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हम तुम सब दर्शक हैं 'अनुभव',
यह जग भी अजब तमाशा है।
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क्या मिलेगा खंगाल कर सागर,
गाद लेकर बदन पे लौटोगे।
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दैरो-हरम ने कौन सा इन्साँ बना दिया,
हिन्दू बना दिया या मुसलमाँ बना दिया।
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याद आ-आके माज़ी ख़ूब सताता है,
दिल के ज़ख्मों को ताज़ा कर जाता है।
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जो जल रहा है दिया फिर ये क्यों है तारीकी,
नहीं है वो तो है अहसास उसका क्यों बाक़ी।
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इस बेचारे दिल कि किस्मत ऐसी है,
जो भी चाहे तोड़ के चलता बनता है।
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पहले समझो इश्क़ क्या है क्या जूनून,
फिर करो ख़ुद के लिए सेहरा तलाश।
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याद जब तुमको किया तो दर्द दूना हो गया,
भूलना चाहा तो दिल का ज़ख्म ताज़ा हो गया।
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नींद बिछड़े हुए लोगों को मना लाई है,
आँख खोलूंगा तो ये फिर से बिछड़ जाएँगे।
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आँख को माया ने क्या धोखा दिया है,
हमने निर्गुण को सगुण ठहरा दिया है।
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परबत न करे नाज़ बुलंदी पे कि पंछी,
परवाज़ में कर देता है परबत पे भी साया।
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लौट कर आया है वो जब आख़री दम पर हूँ मैं,
है निगाहे-नाज़ का पत्थर के बुत से सामना।
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मैं और कुछ नहीं अनुभव हूँ तेरा ऐ हमदम,
शकर-सा आबे-मुहब्बत में घुलने वाला हूँ।
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तन से जब तक साँस का रिश्ता रहेगा,
तेरे अश्कों में मेरा हिस्सा रहेगा।
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रेत पर मैंने बनाई थीं तो तस्वीरें बहुत,
क्या ख़बर थी यूँ मिटा देगी इन्हें पागल हवा।
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तन से जब तक साँस का रिश्ता रहेगा,
तेरे अश्कों में मेरा हिस्सा रहेगा।
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क्या ज़रूरी था फ़रेबे-दोस्ती देना कि वो,
संगदिल था शौक़ था उसका दिलों को तोड़ना।
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दुःख दर्द रंज ग़मी भी मौसम से हैं,
इक आता है तो दूसरा जाता है।
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मैं अपने जज़्बों का इज़हार नहीं करता,
इसका मतलब ये नहीं कि मैं तुझ से प्यार नहीं करता।
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कहाँ मैं अब्र सा घिरकर निकलने वाला हूँ,
मैं जल्द ही तेरे दिल में उतरने वाला हूँ।
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इक क़दम भी तुम जो बढ़ते मेरी जानिब जाने-जाँ,
वस्ल की मंज़िल में ढल जाता वफ़ा का रास्ता।
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अश्रू-जल संभव नहीं इसको बुझा दें,
उम्र भर यह मन यूँही जलता रहेगा।
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ग़ैरों से तो कैसा शिक्वा कैसी शिकायत,
अपनों ने भी कहाँ हमारा साथ दिया है।
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कहा तो होता कभी मुझ से हाले-दिल ऐ दोस्त,
तुझे ख़बर थी कि मैं तुझ पे मरने वाला हूँ।
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सूरज ने ढलते-ढलते क्या ज़ुल्म किया है,
मुझसे मेरा साया तक भी छीन लिया है।
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नाज़ अपनी सीमा से बढ़कर खो देता आकर्षण,
तड़ित उगा देता है नभ में मेघों का संघर्षण।
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दुनिया भी यह हसीन है
लोग भी ख़ूबसूरत हैं मगर
बच्चा हूँ मैं मेले में ग़ुम,
घर को याद करता हूँ
रोता रहता हूँ।
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जीवन दिया है तो जीने का कोई सबब तो दे दे,
पाँव दिए हैं तो तय करने को कोई सफ़र तो दे दे।
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रुका हूँ मोड़ पे शायद के तू नज़र आए,
कहाँ मैं राह की कशाकश से डरने वाला हूँ।
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तू मेरी आवाज़ में कुछ इस तरह मुदग़म हुआ।
हो सदा कोई मुझे लगती है तेरी ही सदा।।
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नाज़ अपनी सीमा से बढ़कर खो देता आकर्षण,
तड़ित उगा देता है नभ में मेघों का संघर्षण।
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शाख़ जब तक तुम न दोगे बैठने को,
मन-विहग आकाश में उड़ता रहेगा।
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अपना चेहरा भी लगा है ग़ैर का चेहरा मुझे,
जब कभी भी गौर से देखा है मैंने आईना।
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मैं अपनी सीमा में बंदी तुम भी सीमा बाँधो।
भावों की परिभाषा सीखो अर्थों को मत लाँघो।।
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जीना दूभर हो जाता है।
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मन भी जैसे सन्नाटा है,
चुपचाप सिसकता रहता है।
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सीने में छिपा लो फिर भी ग़म,
आँसूं बन आँख से ढरता है।
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चिन्ता तन को खा जाती है,
चिन्तन से मनुज संवरता है।
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हम तुम सब दर्शक हैं 'अनुभव',
यह जग भी अजब तमाशा है।
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क्या मिलेगा खंगाल कर सागर,
गाद लेकर बदन पे लौटोगे।
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दैरो-हरम ने कौन सा इन्साँ बना दिया,
हिन्दू बना दिया या मुसलमाँ बना दिया।
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याद आ-आके माज़ी ख़ूब सताता है,
दिल के ज़ख्मों को ताज़ा कर जाता है।
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जो जल रहा है दिया फिर ये क्यों है तारीकी,
नहीं है वो तो है अहसास उसका क्यों बाक़ी।
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इस बेचारे दिल कि किस्मत ऐसी है,
जो भी चाहे तोड़ के चलता बनता है।
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पहले समझो इश्क़ क्या है क्या जूनून,
फिर करो ख़ुद के लिए सेहरा तलाश।
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याद जब तुमको किया तो दर्द दूना हो गया,
भूलना चाहा तो दिल का ज़ख्म ताज़ा हो गया।
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नींद बिछड़े हुए लोगों को मना लाई है,
आँख खोलूंगा तो ये फिर से बिछड़ जाएँगे।
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आँख को माया ने क्या धोखा दिया है,
हमने निर्गुण को सगुण ठहरा दिया है।
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परबत न करे नाज़ बुलंदी पे कि पंछी,
परवाज़ में कर देता है परबत पे भी साया।
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लौट कर आया है वो जब आख़री दम पर हूँ मैं,
है निगाहे-नाज़ का पत्थर के बुत से सामना।
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मैं और कुछ नहीं अनुभव हूँ तेरा ऐ हमदम,
शकर-सा आबे-मुहब्बत में घुलने वाला हूँ।
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तन से जब तक साँस का रिश्ता रहेगा,
तेरे अश्कों में मेरा हिस्सा रहेगा।
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रेत पर मैंने बनाई थीं तो तस्वीरें बहुत,
क्या ख़बर थी यूँ मिटा देगी इन्हें पागल हवा।
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तन से जब तक साँस का रिश्ता रहेगा,
तेरे अश्कों में मेरा हिस्सा रहेगा।
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क्या ज़रूरी था फ़रेबे-दोस्ती देना कि वो,
संगदिल था शौक़ था उसका दिलों को तोड़ना।
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दुःख दर्द रंज ग़मी भी मौसम से हैं,
इक आता है तो दूसरा जाता है।
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मैं अपने जज़्बों का इज़हार नहीं करता,
इसका मतलब ये नहीं कि मैं तुझ से प्यार नहीं करता।
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कहाँ मैं अब्र सा घिरकर निकलने वाला हूँ,
मैं जल्द ही तेरे दिल में उतरने वाला हूँ।
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इक क़दम भी तुम जो बढ़ते मेरी जानिब जाने-जाँ,
वस्ल की मंज़िल में ढल जाता वफ़ा का रास्ता।
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अश्रू-जल संभव नहीं इसको बुझा दें,
उम्र भर यह मन यूँही जलता रहेगा।
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ग़ैरों से तो कैसा शिक्वा कैसी शिकायत,
अपनों ने भी कहाँ हमारा साथ दिया है।
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कहा तो होता कभी मुझ से हाले-दिल ऐ दोस्त,
तुझे ख़बर थी कि मैं तुझ पे मरने वाला हूँ।
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सूरज ने ढलते-ढलते क्या ज़ुल्म किया है,
मुझसे मेरा साया तक भी छीन लिया है।
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नाज़ अपनी सीमा से बढ़कर खो देता आकर्षण,
तड़ित उगा देता है नभ में मेघों का संघर्षण।
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दुनिया भी यह हसीन है
लोग भी ख़ूबसूरत हैं मगर
बच्चा हूँ मैं मेले में ग़ुम,
घर को याद करता हूँ
रोता रहता हूँ।
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जीवन दिया है तो जीने का कोई सबब तो दे दे,
पाँव दिए हैं तो तय करने को कोई सफ़र तो दे दे।
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रुका हूँ मोड़ पे शायद के तू नज़र आए,
कहाँ मैं राह की कशाकश से डरने वाला हूँ।
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तू मेरी आवाज़ में कुछ इस तरह मुदग़म हुआ।
हो सदा कोई मुझे लगती है तेरी ही सदा।।
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नाज़ अपनी सीमा से बढ़कर खो देता आकर्षण,
तड़ित उगा देता है नभ में मेघों का संघर्षण।
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शाख़ जब तक तुम न दोगे बैठने को,
मन-विहग आकाश में उड़ता रहेगा।
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अपना चेहरा भी लगा है ग़ैर का चेहरा मुझे,
जब कभी भी गौर से देखा है मैंने आईना।
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मैं अपनी सीमा में बंदी तुम भी सीमा बाँधो।
भावों की परिभाषा सीखो अर्थों को मत लाँघो।।
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यह तो सोचा भी नहीं था मैंने 'अनुभव',
धूप ढलने पर भी तन तपता रहेगा।।
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रेत पर मैंने बनाई तो थीं तसवीरें बहुत,
क्या ख़बर थी यूँ मिटा देगी इन्हें पागल हवा।
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Tarsa tha tere pyar mein main kuch is qadar,
bacha koi rota ho jaise amma se bichud kar...
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Main shayar to nahin par
shayari ki zuban jaanta hun,
fan ye sikha nahin
visre mein mila jaanta hun...
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Kya dhundhta firta hai dasht mein mere humdum,
yahan aashna-e-gam koi milne nahin wala....
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Kab se daale baithe the shakl par ik bebak parda
qasid ne khabar de kar tumhari beparda sa kar diya....
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Tumhe pane ki hasrat to kho he chuka tha 'anubhav',
khushi ki mehfil ne tumhari par gamnak kar diya...
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Tumhare haathon ki chudiyon ne maazi ko samne kar diya,
pathra gayi aankhon ko ashkon se bhar diya...
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Main aur kuch nahin 'anubhav hun tera aye humdum, shakr sa aabe mohabbat mein ghulne wala hun.
धूप ढलने पर भी तन तपता रहेगा।।
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रेत पर मैंने बनाई तो थीं तसवीरें बहुत,
क्या ख़बर थी यूँ मिटा देगी इन्हें पागल हवा।
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Tarsa tha tere pyar mein main kuch is qadar,
bacha koi rota ho jaise amma se bichud kar...
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Main shayar to nahin par
shayari ki zuban jaanta hun,
fan ye sikha nahin
visre mein mila jaanta hun...
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Kya dhundhta firta hai dasht mein mere humdum,
yahan aashna-e-gam koi milne nahin wala....
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Kab se daale baithe the shakl par ik bebak parda
qasid ne khabar de kar tumhari beparda sa kar diya....
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Tumhe pane ki hasrat to kho he chuka tha 'anubhav',
khushi ki mehfil ne tumhari par gamnak kar diya...
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Tumhare haathon ki chudiyon ne maazi ko samne kar diya,
pathra gayi aankhon ko ashkon se bhar diya...
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Main aur kuch nahin 'anubhav hun tera aye humdum, shakr sa aabe mohabbat mein ghulne wala hun.