Tuesday, November 11, 2014

जय माता दी

बर्फ़ की चादर ओढ़े,
पर्वतों की छाँव में,
रहती है माँ वहाँ,
दूर इक ठन्डे गाँव में
शीत लहर चलती है जहाँ, 
घटा भी झूमती है जहाँ, 
ऊर्जा ही ऊर्जा है जहाँ, 
रहती है माँ वहाँ, 
दूर इक ठन्डे गाँव में
बच्चे, बड़े, बूढ़े सभी, 
चलते हैं मीलों-मील,
'जय माता दी' दोहराते हुए, 
रहती है माँ वहाँ,
दूर इक ठन्डे गाँव में
मन को शान्ति मिलती है जहाँ, 
तन नहीं थकता है जहाँ, 
रहती है माँ वहाँ,
दूर इक ठन्डे गाँव में
हवा भी मधुर लगती है जहाँ,
मन अमृत लगता है जहाँ,
दर्शन पा धन्य हो जाते जहाँ,
रहती है माँ वहाँ, 
दूर इक ठन्डे गाँव में               
   

Saturday, June 14, 2014

हादिसा



गुलिस्तान में खिले गुलों 
की तरह,
तुम्हारा चेहरा,
कोमल, मासूम, आकर्षक 
सदा महकता तुम्हारा एहसास 
उस एहसास   
की डोर से बंधा रहा मैं 
एक उम्र तक।
हालात की तेज़ हवा का झोंका आया 
पत्ती-पत्ती बिखर गई 
डोर टूट गई 
लेकिन एहसास बचा रह गया।
जीवन की राह में 
हम बिछुड़ गए।
तुम्हीं कहो,
इस हादिसे को क्या नाम दूँ।    

Wednesday, February 5, 2014

माध्यम


डूबते सूरज को तू भी तो देखता होगा
गर मैं तुझे न देख सकूँ तो क्या,
यह सूरज तो हम दोनों को एक साथ देखता होगा।
आँखों से झाँक कर दिल के हालात देखता होगा,
मन में छिपि छोटी-सी इक कायनात देखता होगा।
इसी तरह से चन्द्रमा रात देखता होगा,
होंठों तक जो न आई,
दिल पर लिखी बात देखता होगा,
गर मैं तुझे न देख सकूँ तो क्या,
ये सूरज चाँद तो हम दोनों को एक साथ देखते होंगे।
इनके माध्यम से भी यदि हम
एक दूसरे को देख न पाएँ
तो कम से कम एक दुसरे को महसूस तो कर सकते हैं।