भयानकता वनों की
सूनापन सहरा का
बेचैनी समुंदर की
उदासी मौसमों की
बेनियाज़ी पर्वतों की
क्या नाम दूँ तुझको?
कभी ऊपर उठती है
कभी नीचे गिराती है
कभी हर रास्ता परिचित
कभी हर राह अनजानी
मेरी मंजिल अगर तू है
तो ले ए ज़िन्दगी
मैं बैठता हूँ
हारकर, थक कर I
No comments:
Post a Comment