Friday, June 18, 2010

ग़ज़ल

तू मेरी आवाज़ में कुछ इस तरह मुदगम हुआ I
हो सदा कोई मुझे लगती है तेरी ही सदा I
(mudgam - dissolve)

अपना चेहरा भी लगा है ग़ैर का चेहरा मुझे ,
जब कभी भी गौर से देखा है मैंने आइना I

इक कदम भी तुम जो बढ़ते मेरी जानिब जाने-जाँ ,
वस्ल की मंजिल में ढल जाता वफ़ा का रास्ता I
(vasl - milan)

क्या ज़रूरी था फरेबे-दोस्ती देना की वो ,
संगदिल था शौक था उसका दिलों को तोड़ना I

लौट कर आया है वो जब आखरी दम पर हूँ मैं ,
है निगाहे-नाज़ का पत्थर के बुत से सामना I
(nigahe-naaz - beautiful eyes)

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