बादलों के शीश
पर
आरज़ूओं का गगन,
श्वास हैं पथिक
अनन्त पथ के
मुझको इस जहाँ
में चैन
मिल भी पाएगा
कहाँ?
है वही मेरा
जहाँ
लाँघकर ये आसमाँI
हैं क्षितिज पर तारिकाएँ
मेरे इन्तज़ार में,
जा मिलूँ उन से
मैं कैसे
स्यात् यह संभव
नहीं
लेकिन उनसे ऊर्जा
तो
आ रही है
रात-दिन
मैं वहाँ पहुँचू
न पहुँचू
ऊर्जा आती रहे
ज़िन्दगी चलती रहेI
और जब चुक
जाए
साँसों का हिसाब
ऊर्जा बन जाऊँ
में ख़ुद
ऊर्जा ही ऊर्जा
बस यही अरमान
हैI