Walking through the crowd
sometime ask yourself
what have you done for others
what have you done for yourself.
This is a world full of hatred
no one cares for anyone else,
no one has the time to think
what is bothering someone else.
If you want to be a part of the crowd
then go ahead and be a fool
but if you want to make a difference
then do at your part the best.
Give people what you can
and never expect a thing
because precious become those things
that you do not have to yourself.
Friday, September 3, 2010
Wednesday, September 1, 2010
तुम और मैं
ये कैसा तिलिस्म है!
कि हुजूम में चलते हुए
जब तुम्हारा नक्श ज़हन में
उभरता है तो मैं,
और ही तरह का हो जाता हूँ I
यूँ लगने लगता है जैसे
मेरा क़द दराज़ हो गया है
और मैं,
अर्श को छूने के लिए बढ़ा जा रहा हूँ I
कहीं यह ख़ुद-फ़रेबी तो नहीं?
तुम्हारी तस्वीर ज़हन में आते ही
ऐसा क्यों लगता है कि मैं,
अपने से भी बुलंद हूँ,
बाक़ियों से भी?
क्यों लगने लगता है कि रीफ़अतें
मेरे क़दमों से लिपटी हैं?
कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारा
ख्याल आते ही
तुम मेरे अन्दर समा जाते हो
और हम दोनों मिलकर 'मैं'
हो जाते हैं?
बुलन्द,
और भी बुलन्द?
कि हुजूम में चलते हुए
जब तुम्हारा नक्श ज़हन में
उभरता है तो मैं,
और ही तरह का हो जाता हूँ I
यूँ लगने लगता है जैसे
मेरा क़द दराज़ हो गया है
और मैं,
अर्श को छूने के लिए बढ़ा जा रहा हूँ I
कहीं यह ख़ुद-फ़रेबी तो नहीं?
तुम्हारी तस्वीर ज़हन में आते ही
ऐसा क्यों लगता है कि मैं,
अपने से भी बुलंद हूँ,
बाक़ियों से भी?
क्यों लगने लगता है कि रीफ़अतें
मेरे क़दमों से लिपटी हैं?
कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारा
ख्याल आते ही
तुम मेरे अन्दर समा जाते हो
और हम दोनों मिलकर 'मैं'
हो जाते हैं?
बुलन्द,
और भी बुलन्द?
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