ये आलम है ज़ेहन का मेरे,
कभी तो चेहरा
कभी आइना नहीं मिलता,
दुरुस्त दर पे तुम्हारे
मुराद मिलती है,
पता बताए जो
वो रहनुमा नहीं मिलता,
हजारों रास्ते हैं
तुम से दूर जाने के,
जो तुम तक आता हो
वह रास्ता नहीं मिलता,
तुम्हारा रास्ता तकती
हैं मेरी आँखें मगर,
कहीं तुम्हारा कोई
नक्शे-पा नहीं मिलता I