Friday, August 9, 2013

आत्म समर्पण

भयानकता वनों की
सूनापन सेहरा का
बेचैनी समुन्दर की
उदासी मौसमों की
बेनियाज़ी पर्वतों की
क्या नाम दूँ तुझको?
कभी ऊपर उठाती है
कभी नीचे गिराती है
कभी हर रास्ता परिचित
कभी हर राह अनजानी
मेरी मंज़िल अगर तू है
तो ले ऐ ज़िन्दगी
मैं बैठता हूँ
हारकर, थककर।    

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